CLASS 10TH HINDI SUBJJECTIVE QUESTION ANSWER श्रम विभाजन और जाति प्रथा

10th हिन्दी चैप्टर -1 (श्रम विभाजन और जाति प्रथा) सब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर

1. प्रश्न :- कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए क्या आवश्यक है ?                      [2021A1]

उत्तर :- कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्तियों की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें जिससे वह अपने पेशा या कार्य का चुनाव निजी क्षमता और योग्यता के आधार पर कर सके।.

 

2. प्रश्न :- 2. भीमराव अंबेदकर किस विडम्बना की बात करते हैं?        [2020A1]

उत्तर :–  लेखक भीमराव अंबेदकर का मानना है कि हमारे आधुनिक सभ्य समाज में भी जातिवाद के पोषकों की कमी नहीं है। इसके पोषक श्रम विभाजन का आधार जाति प्रथा को मानते हैं। उनका कहना है कि हमारे इस समाज में ‘कार्य कुशलता’ के लिए श्रम विभाजन आवश्यक है और जाति प्रथा भी श्रम विभाजन का दूसरा रूप है। इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है। जबकि जाति प्रथा का दूषित सिद्धांत मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा निजी क्षमता का विचार किये बिना गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है। यह इस आधुनिक सभ्य समाज के लिए विडम्बना की बात है।

3. प्रश्न :-  जातिप्रथा भारत के बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई हैं?

                        [2017A11, 2021AI, 2022A11]

उत्तर :भीमराव अंबेदकर ने श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ में लिखा है कि जाति प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्व निर्धारित ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवनभर के लिए एक पेशों में बाँध भी देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो भूखे मरने के अलावा क्या रह जाता है इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है

4.प्रश्न :- जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों नहीं कहीं जा सकती ?

                        [2014A11, 2016AI]

उत्तर :- भीमराव अम्बेदकर ने श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ शीर्षक निबंध में,

               भारत में व्याप्त जाति प्रथा की निन्दा की है। जाति प्रथा भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वभाविक रूप नहीं कही जा सकती है क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है। यह प्रथा पेशे की स्वतंत्रता का गला घोंट देती है यह एक दूषित सिद्धांत है जो मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर देती है।

5. प्रश्न :- सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक ने किन विशेषताओं को आवश्यक माना है?

उत्तर :- भीमराव अंबेदकर का मानना है कि सच्चा लोकतंत्र स्वतंत्रता, समता और भ्रातृत्व पर आधारित होना चाहिए लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति ही नहीं है, लोकतंत्र मूलतः सामूहिक जीवनचर्चा की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। ऐसे समाज के बहुविध हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए अर्थात् एक-दूसरे के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव हो।

6. प्रश्न :- लेखक ने पाठ में किन पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में दिखाया है?                    [2015A11]

उत्तर :- मानव मुक्ति के पुरोधा एवं संविधान निर्माता भीमराव अंबेदकर ने ‘श्रम – विभाजन और जाति प्रथा’ शीर्षक निबंध में जाति प्रथा को हानिकारक प्रथा बताया है। जाति प्रथा श्रमिकों को ऊँच और नीच में बाँट देती है। जाति प्रथा पेशा चयन की स्वतंत्रता का गला घोंट देती है।

श्रम विभाजन की दृष्टि से भी जाति प्रथा दोषपूर्ण है। यह मनुष्य की इच्छा पर निर्भर नहीं है। मनुष्य की व्यक्तिगत भावना तथा व्यक्तिगत रुचि का इसमें कोई स्थान या महत्त्व नहीं रहता।

           आर्थिक पहलू से भी जाति प्रथा हानिकारक है, क्योंकि लोग रुचि के साथ काम नहीं करते। यह प्रथा मनुष्य की स्वाभाविक प्रेरणा रुचि व आत्मशक्ति को दबाकर उन्हें अस्वाभाविक नियमों में जकड़कर निष्क्रिय बना देती है।

7.प्रश्न :- लेखक के अनुसार आदर्श समाज में किस प्रकार की गतिशीलता होनी चाहिए?                                                 [2018AI1]

उत्तर :- लेखक भीमराव अम्बेदकर के अनुसार किसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिसमें कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित हो सके। ऐसे समाज में बहुविध हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए।

8.प्रश्न :- अम्बेदकर के अनुसार जाति प्रथा के पोषक उसके पक्ष में क्या तर्क देते हैं?[2014A1]

उत्तर :- अम्बेदकर के अनुसार यह विडम्बना की बात है कि इस आधुनिक और सभ्य समाज में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है। इसके पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। समर्थन का एक आधार यह कहा जाता है कि आधुनिक सभ्य समाज ‘कार्य कुशलता’ के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है और चूँकि जाति प्रथा भी श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है।

 

 

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